टुन टुन, जिन्हें हम “कॉमेडी की रानी” के नाम से जानते है, भारत की पहली प्रमुख महिला कॉमेडियन और गायिका थीं। अपनी कॉमिक टाइमिंग, मजाकिया संवादों और प्रभावशाली हंसी के साथ, उन्होंने मनोरंजन जगत में अपने लिए एक अलग जगह बनाई। एक संघर्षशील अभिनेत्री से एक प्रतिष्ठित हास्य कलाकार तक टुन टुन की यात्रा किसी फिल्म की कहानी से काम नहीं है। उनका काम रूढ़िवादिता को तोड़ती है और महिला हास्य कलाकारों की आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग दर्शन करती है।
शुरुआती जीवन और फिल्म जगत में प्रवेश
11 जुलाई, 1923 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में उमा देवी खत्री के रूप में टुन टुन का जन्म हुआ था। कम उम्र में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था इसलिए उनकी परवरिश चाचा चाची ने की। टुन टुन का अभिनय के प्रति जुनून 13 साल के उम्र में ही उभर गया। फिल्म जगत में अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह बॉम्बे (मुंबई) भाग कर आ गयी थीं। और फिर वही से उनका फिल्मो का सपना शुरू हुआ हालाँकि टुन टुन का सफर एक गायिका के रूप में शुरू हुआ, उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में अपनी सुरीली आवाज दी। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींचा और उन्होंने जल्द ही अभिनय के अवसर तलाशने शुरू कर दिए।
एक हास्य अभिनेता के रूप में उनका जन्म
टुन टुन की कॉमेडी की प्रतिभा तब उजागर हुई जब उन्हें गुरु दत्त द्वारा निर्देशित फिल्म “आर पार” (1954) में लिया गया। उनकी बेबाक कॉमिक टाइमिंग और मजाकिया संवाद पेश करने की काबिलियत ने दर्शकों को खूब भाया। टुन टुन की शारीरिक कॉमेडी की अनूठी शैली और उनकी प्रभावशाली हँसी ने उन्हें देश भर के दर्शकों का चहेता बना दिया। वह जल्द ही एक लोकप्रिय हास्य कलाकार बन गईं और “मिस्टर एंड मिसेज ’55” (1955), “छू मंतर” (1956), और “हम सब चोर हैं” (1956) जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को एक प्रमुख हास्य अभिनेत्री के रूप में उनकी पकड़ को मजबूत कर दिया।
रूढ़िवादिता को तोड़ना और लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देना
पुरुष-प्रधान फिल्म जगत में एक महिला हास्य कलाकार के रूप में टुन टुन की सफलता कभी न भूकने वाली है। उन्होंने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी और रूढ़ियों को तोड़ा, यह साबित करते हुए कि महिलाएं कॉमेडी में भी कामयाबी हासिल कर सकती हैं। हंसी भरी भूमिकाओं को अपने आत्मविश्वास और आकर्षण के साथ निभाने की उनकी क्षमता ने अन्य महिला हास्य कलाकारों के लिए राष्ट खोल दिया। टुन टुन ने अपने प्रतिभा से कॉमेडी को विशेष बनाया, जिससे उनके निभाए गए किरदारों में एक अनूठा आयाम जुड़ा और वे दर्शकों के बीच एक प्रिय व्यक्ति बन गईं।
विरासत और योगदान
भारतीय सिनेमा में टुन टुन का योगदान उनकी हास्य भूमिकाओं से कहीं आगे तक बढ़ा। उन्होंने नाटकीय और सहायक भूमिकाओं में यादगार प्रदर्शन करते हुए एक अभिनेत्री के रूप में भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति, विभिन्न शैलियों के बीच सहजता से बदलाव करने की योग्यता के साथ, उन्हें अलग करती है। कॉमेडी शैली पर टुन टुन के प्रभाव ने अन्य प्रतिभाशाली महिला हास्य कलाकारों के उभरने का रास्ता दिखाया, जिन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग पर गहरी छाप छोड़ी।
बाद का जीवन और मान्यता
टुन टुन ने एक स्थायी विरासत छोड़ते हुए अपने पूरे करियर में दर्शकों का मनोरंजन करना जारी रखा। उन्हें फिल्म “दिली का ठग” (1958) में उनकी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार सहित कई प्रशंसाएं मिलीं। टुन टुन के काम का जश्न मनाया जाता रहा है और वह भारतीय सिनेमा में एक प्रतिष्ठित हस्ती बनी हुई हैं। लेकिन कहते है न की हर कहानी का अंत सुखद नहीं होता है वैसे ही टुन टुन का अंत भी दुखद रहा है।
उन्होंने अपने अंतिम दिन एक चॉल में बिताए, वह मुश्किल से खाना या दवा का खर्च उठा पाती थीं। एक इंटरव्यू में उन्होंने उस सिनेमा जगत के द्वारा पीछे छोड़ दिए जाने के बारे में बात की जिसे उन्होंने इतना कुछ दिया था, और वह अपनी गरीबी पर हँसी थी, और जिस तरह से दुनिया उनके साथ व्यवहार कर रही थी उस पर हँसा करती थी। 24 नवम्बर 2003 को उन्होंने आखरी सांस ली।