हिंसा पर भेदभाव क्यों?
देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद भवन की कार्यवाही रुकी हुई है। कारण मणिपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा को
लेकर देश के प्रधानमंत्री के बयान की मांग करता विपक्ष। लेकिन जब वही घटना विपक्षी पार्टियों द्वारा शाषित राज्य
में होते है। उसपर कोई बहस की मांग नहीं करता। उन पीड़ितों की आवाज़ कोई बनने को तैयार नहीं है। बिहार में
पिछले दिनों कई घटनाएं हुई। कटिहार में सरकार से बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग करने वाली जनता को
सिर में गोली मारी जाती है। बेगूसराय में दिलत स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार होता है। उसे सरेआम बिना कपड़े के घुमाया
जाता है। मुज़्ज़फरपुर में पासवान समाज के व्यक्ति की आधी जली चिता को नदी में फेंक उनकी अस्थियों पर पेशाब
किया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोगों उस मृत पासवान समाज के व्यक्ति के साथ ज़मीन विवाद था। लेकिन उस
इंसान की जलती चिता से बदला लेना कहाँ की इंसानियत है? बिहार पुलिस मूकदर्शक बनी तमाशा देखती रही।
क्योंकि उनके आंका पटना की गद्दी पर बैठे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री को राज्य में
जाने की सलाह देते हैं। ख़ुद के राज्य में अराजकता चरम सीमा पार कर चुका है। कहावत है जब खुद के घर सीशे का हो
तो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकते हैं।
बंगाल पंचायत चुनाव में जिस प्रकार हिंसा हुई। वोट के नाम पर ख़ून की नदियां बहीं इसका जवाब कौन देगा? वहां की
मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारियों से पीछा नहीं छुड़ा सकतीं हैं। एक राज्य की कानून व्यवस्था राज्य सरकार की
जिम्मेदारी होती है। ये कह देना हम जितनी सुरक्षा दे सकते हैं उतनी देंगे बाकी हमारी जिम्मेदारी नहीं है। फ़िर ये लोग
लोकतंत्र खतरे में होने की बात कहते हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ख़ुद को दिल्ली का मालिक बताते हैं। जिस प्रकार दिल्ली में बाढ़ आने से लोगों को परेशानियों का
सामना करना पड़ा,सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। दिल्ली सरकार से दिल्ली-अलवर, दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर
के लिए पैसे मांगे गए। दिल्ली सरकार ने कहा हमारे पास पैसे नहीं हैं। यह कॉरिडोर केंद्र सरकार के साथ हरयाणा
सरकार और दिल्ली सरकार के पैसे से बनना है। सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए पिछले 3 साल में दिल्ली सरकार के
एडवेर्टिसमेन्ट बजट का हिसाब मांगा। इसके साथ 15 दिनों के अंदर दिल्ली राज्य के हिस्से की राशि उपलब्ध कराने
का निर्देश दिया।
विपक्षी पार्टियों की एकता का एक ही आधार है। प्रधानमंत्री बदलो। प्रधानमंत्री के कार्यों की नीतिगत आलोचना करना
इनके बस की बात नहीं लगती है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना। तुस्टीकरण की राजनीति करना। मुसलमान हिन्दू में भेद
भाव करना। यही इनकी USP है।
तय देश की जनता को करना है। 2024 की लड़ाई देश की राजनीति में अहम होने वाली है।