प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई को पेरिस में बैस्टिल डे परेड में सम्मानित अतिथि होंगे।
यह दूसरा अवसर है जब किसी भारतीय प्रधान मंत्री को पेरिस में 14 जुलाई के समारोह में सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है, जिसमें पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 में भाग लिया था।
भारत और फ्रांस कैसे बने दोस्त?
मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद, जब भारत ने खुद को परमाणु हथियार संपन्न राज्य घोषित किया, तो फ्रांस भारत के साथ बातचीत शुरू करने वाली पहली प्रमुख शक्ति थी। कुछ ही हफ्तों के भीतर, प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विशेष दूत के रूप में ब्रजेश मिश्रा पेरिस में थे, जहां राष्ट्रपति शिराक ने उनका स्वागत किया, जिन्होंने न केवल धैर्यपूर्वक सुना (लंदन और मॉस्को में जो दिया गया था उससे कहीं अधिक), बल्कि सराहना भी प्रदर्शित की भारत की राजनीतिक और सुरक्षा मजबूरियाँ।
फ्रांस से यह अपार समर्थन, खासकर जब अमेरिका और अन्य लोग भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे थे, भारत-फ्रांस संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ जो आज भी मजबूत हो रहे हैं।
भारत-फ्राँस संबंधों में विस्तार
जब वर्ष 2023 को भारत और फ्राँस द्वारा रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के रूप में मनाया जा रहा है, तब यह आत्मनिरीक्षण का एक अनूठा अवसर भी प्रदान कर रहा है। वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित, समय के मानकों पर खड़ी उतरी इस रणनीतिक साझेदारी ने साझा मूल्यों और शांति, स्थिरता की आकांक्षाओं तथा सबसे महत्त्वपूर्ण, रणनीतिक स्वायत्तता की उनकी इच्छा के विषय में गति प्राप्त करना जारी रखा है।
पिछले ढाई दशकों में भारत और फ्राँस ने साझा मूल्यों और शांति, सुरक्षा एवं सतत विकास को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता पर आधारित घनिष्ठ और गतिशील संबंध का विकास किया है।
यह रणनीतिक साझेदारी रक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संस्कृति जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उनके परस्पर सहयोग के पीछे एक प्रमुख प्रेरक शक्ति रही है। अभी जब दोनों राष्ट्र इस मील के पत्थर का उत्सव मना रहे हैं, इस विशेष संबंध की सफलताओं एवं उपलब्धियों पर विचार करने तथा उज्ज्वल एवं समृद्ध भविष्य की ओर देखने का यह उपयुक्त समय है।
भारत फ्रांस संबंध ऐतिहासिक पहलू
अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, अरबिंदो घोष और सुब्रमण्यम भारती जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों से बचने के लिए फ्रांसीसी भारत में शरण ली।
1947 में फ्रांस ने स्वतंत्र भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
1948 में दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें कहा गया कि फ्रांसीसी भारत के लोग अपना राजनीतिक भविष्य चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
अगस्त 1962 में, 1956 में हस्ताक्षरित सत्र संधि के अनुसार, फ्रांसीसियों ने भारत में अपनी सारी संपत्ति भारत सरकार को सौंप दी। तदनुसार, सभी पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेशों को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के रूप में प्रशासित किया गया था।
दोनों देशों के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन–से हैं?
रक्षा:
- फ्राँस भारत के लिये एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में उभरा है, जो वर्ष 2017-2021 में भारत के लिये दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा।
- महत्त्वपूर्ण रक्षा सौदों और परस्पर सैन्य संलग्नता में वृद्धि के साथ फ्राँस भारत के लिये एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है।
उदाहरण:
- भारतीय नौसेना के लिये फ्राँसीसी स्कॉर्पीन पारंपरिक पनडुब्बियाँ (जिन्हें वर्ष 2005 के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते के तहत भारत में बनाया जा रहा है) और भारतीय वायु सेना के लिये 36 राफेल लड़ाकू जेट की आपूर्ति।
- भारत के टाटा समूह ने वड़ोदरा, गुजरात में सी-295 सामरिक परिवहन विमान के विनिर्माण के लिये फ्राँस के एयरबस के साथ समझौता किया है।
- सैन्य वार्ता और नियमित रूप से आयोजित संयुक्त अभ्यास:
- वरुण (नौसेना), गरुड़ (वायु सेना) और शक्ति (थल सेना)
आर्थिक सहयोग:
- वर्ष 2021-22 में 12.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक व्यापार के साथ फ्राँस भारत के एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरा है।
- अप्रैल 2000 से जून 2022 के बीच 10.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश (भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह का 1.70) के साथ यह भारत का 11वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा।
असैन्य परमाणु सहयोग:
- फ्राँस उन आरंभिक देशों में एक था जिनके साथ भारत ने असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद अप्रसार व्यवस्था (Non-proliferation Order) में भारत के अलगाव को सीमित करने में भी पेरिस ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के साथ-साथ परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में प्रवेश के भारत के दावे का फ्राँस समर्थन करता है।
जलवायु सहयोग:
- दोनों देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साझा चिंता रखते हैं, जहाँ भारत ने पेरिस समझौते में फ्राँस का समर्थन करते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रति अपनी प्रबल प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन पर अपने संयुक्त प्रयासों के तहत वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की शुरुआत की।
समुद्री संबंध:
- हिंद महासागर क्षेत्र में भारत-फ्राँस सहयोग की संयुक्त सामरिक दृष्टि संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक खाका प्रस्तुत करती है।
- हिंद महासागर में फ्राँस-भारत संयुक्त गश्त समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ जुड़कर हिंद महासागर में अपने पदचिह्न का विस्तार करने के भारत के इरादे का संकेत देती है।
- दोनों देशों ने एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुले हिंद-प्रशांत के प्रति साझा विज़न प्रकट किया है जिससे समुद्री सुरक्षा के लिये सहयोग को और बल मिला है।
- सितंबर 2022 में भारत और फ्राँस एक हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग कोष (Indo-Pacific Trilateral Development Cooperation Fund) स्थापित करने पर सहमत हुए जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिये सतत अभिनव समाधानों का समर्थन करेगा।
- भारत, फ्राँस, संयुक्त अरब अमीरात त्रिपक्षीय पहल का उद्देश्य अफ्रीका के पूर्वी तट से सुदूर प्रशांत तक समुद्री क्षेत्र जागरूकता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
अंतरिक्ष सहयोग:
- भारत और फ्राँस ने हाल के वर्षों में अंतरिक्ष के क्षेत्र में परस्पर सहयोग को मज़बूत करना जारी रखा है। अंतरिक्ष क्षेत्र में उनके परस्पर सहयोग के हाल के कुछ घटनाक्रमों में शामिल हैं:
- ISRO-CNES संयुक्त कार्य समूह: वर्ष 2020 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर स्पेस स्टडीज (CNES) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने सहयोग को और बढ़ाने के लिये एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की।
- संयुक्त मंगल मिशन: वर्ष 2020 में ISRO और CNES ने निकट भविष्य में एक संयुक्त मंगल मिशन पर सहयोग करने की योजना की घोषणा की।
- अंतरिक्ष मलबे पर सहयोग: भारत और फ्राँस अंतरिक्ष मलबे की समस्या को हल करने के लिये भी मिलकर कार्य कर रहे हैं।
- संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन: वर्ष 2021 में ISRO और CNES ने एक संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन (Earth observation mission) पर सहयोग करने की योजना की घोषणा की, जिसमें पृथ्वी के वातावरण एवं जलवायु का अध्ययन करने के लिये एक उपग्रह का विकास करना भी शामिल होगा।
आगे की राह
- व्यापार और निवेश में वृद्धि लाना: दोनों देश द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने की दिशा में कार्य कर सकते हैं। संयुक्त उद्यम स्थापित करने, व्यापार समझौतों का विस्तार करने और सीमा-पार निवेश को बढ़ावा देने जैसे उपायों के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
- रक्षा सहयोग: भारत और फ्राँस के बीच एक सुदृढ़ रक्षा संबंध कायम है, जिसे संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा रक्षा उत्पादन में साझेदारी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाकर और सुदृढ़ किया जा सकता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: छात्रों के आदान-प्रदान, कला एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और भाषा कार्यक्रमों जैसी विभिन्न पहलों के माध्यम से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने से संबंधों को गहरा करने तथा आपसी समझ को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा: भारत और फ्राँस जलवायु परिवर्तन एवं ऊर्जा सुरक्षा की वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं। स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान एवं विकास पर सहयोग, नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
- वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय सहयोग: दोनों देश अनुसंधान एवं विकास, नवाचार तथा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण सहित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग कर सकते हैं। यह उनकी अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने और विकास के नए अवसर पैदा करने में मदद कर सकता है।